नई दिल्ली। २९ अप्रैल का दिन खगोल वैज्ञानिकों के लिए विशेष चौकस रहने वाला रहा। जिस उल्कापिंड के विगत कई दिनों से पृथ्वी के पास से गुजरने की अटकलें चल रही थीं, वह आखिरकार बुधवार को पृथ्वी के पास से गुजर गया।
बुधवार को अपराह्न ३.३० बजे पृथ्वी के पास से उल्कापिंड सुरक्षित गुजरने से इससे जुड़ी तमाम अफवाहों पर पूर्णविराम लग गया। खगोल वैज्ञानिक इस तरह की घटनाओं पर शोध को बहुत महत्वपूर्ण मान रहे हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि सौर मंडल में दूरस्थ क्षेत्रों से आने वाले इन पिंडों से सौर उत्पत्ति व पूर्वानुमान आदि में मदद मिलेगी।
वैज्ञानिकों का कहना है कि जब किसी उल्कापिंड से पृथ्वी पर खतरें को लेकर अटकलें होती हैं तो इस पर शोध अति महत्वपूर्ण हो जाता है। इस पर दुनियाभर के वैज्ञानिकों की नजरें टिकी हुई थीं। हालाँकि इससे पृथ्वी को किसी तरह का कोई खतरा नहीं था, फिर भी वैज्ञानिकों ने इस पर पूरी दृष्टि बनाए रखी। वैज्ञानिकों की नजर इसके परिक्रमण पथ पर थी, उल्कापिंड के भ्रमण पथ का अध्ययन कर इसके पुन: पृथ्वी के पास से गुजरने का अनुमान लगाया जा सकता है।
कहां से आकर कहां जाते हैं उल्कापिंड?
मंगल व बृहस्पति के बीच के स्थान को एस्ट्रोइड बेल्ट कहा जाता है। यहां लाखों की संख्या में उल्कापिंड मौजूद हैं। इनका संतुलन बिगड़ने पर गुरुत्व प्रभाव के चलते सूर्य की ओर परिक्रमण करने लगते हैं। सूर्य की ओर आते समय ये उल्कापिंड मंगल, पृथ्वी, शुक्र व बुध की कक्षा के पास से होकर गुजरते हैं। इसके चलते इन ग्रहों के गुरुत्व के प्रभाव में आने व यहां गिरने का खतरा बना रहता है। कक्षा से अधिक दूर होने पर यह सूर्य की परिक्रमा करते हुए अपना पथ बना लेते हैं।
उल्कापिंड गुजर गया पृथ्वी के पास से, वैज्ञानिकों की निगाहें टीकी